पुरुष बनाम मर्द

माँ की गोद में खेलता छोटा लड़का यह नहीं जानता कि उसे कितनी बड़ी जंग के लिए तैयार किया जा रहा है। ऐसी जंग जो पुरुष होने के बावजूद उसे मर्द बनने के लिए बाध्य करती है। देखने में लगता है यह तो एक ही शब्द है, लेकिन नहीं दोनों में ज़मीन -आसमान का फर्क है। पुरुष तो कोई भी जन्म से हो सकता पर मर्द बनने के लिए उसे कई कसौटियां पर करनी पड़ती है। फिर चाहे वो इस कसौटी को पार करना चाहे या नहीं। पुरुष पर इस बात का दबाव रहता है की वो मर्द बने। उसे रोने का हक नहीं वरना वो मर्द नहीं रहेगा , उसे रक्षा करनी है वरना वो मर्द नहीं है। रक्षा करते हुए शहीद हो जाना सच्चे मर्द की निशानी है।
                                                                हम रोज़ देखते हैं की पुरुष को तरह तरह की हिदायतें दी जाती है महिला की रक्षा करो , महिला का सम्मान करो इत्यादि । यह सब पुरुष नहीं मर्द से अपेक्षित है। और इस मर्दानगी को साबित करने के लिए पुरुष तरह तरह के उपक्रम करता है। हिंसा , रक्तपात , दुह्साहस करना यह सब उसी मर्दानगी को साबित करने के लिए किया जाता है। मर्दानगी जो जन्मजात नहीं है, बल्कि कमाई जाती है। मगर क्या होता जब कोई पुरुष मर्द बनने से इनकार कर दे , वो कह दे की वो पुरुष ही ठीक है उसे मर्द कहलाने में कोई दिलचस्पी नहीं है। वो रक्षा करने से इंकार कर दे, वो बिना बात सम्मान देने से इंकार कर दे। वो सबको एक जैसी नज़र से देखे।
                                           मर्द बनकर पुरुष जितनी हिंसा करता है वो नहीं होगी। यानी समाज को मर्द की ज़रुरत नहीं है , फिर भी एक भ्रम फैलाया जा रहा है। एक दबाव है की हर पुरुष मर्द बने , स्त्री का रक्षक बने। वो रक्षक है तो ,उसे भक्षक बनते देर नहीं लगेगी। जो काम हिंसा के लिए सौपा गया है ,उसमे शांति की उम्मीद कैसे की जा सकती है। मर्द का इतना महिमामंडन किया जाता है क़ि अनजाने में ही पुरुष मर्द बनने की इच्छा पाल लेता है। और फिर यही मर्द पुरुष से वो सब कुछ करवाता जो जिसकी बिलकुल ज़रुरत नहीं है। यह मर्द संवेदन हीन है , लड़ता है , सख्त है और आकर्षक भी है।
                                                       फिर क्या होता है जब इसी मर्द को किसी एक दिन दर्द होता है , रोने की इच्छा होती है। उसे मर्द का ठप्पा रोने नहीं देता तब , यह दमन उसे अपराधी बना देता है। और समाज पूरे पुरुष समाज को उसी नज़र से देखने लगता है।  अचानक रातोरात यह पुरुष मर्द न रहकर अपराधी हो जाता है।
                                          मर्द असल में समाज के लिए घातक है। समाज में पुरुष की आवश्यकता है मर्द की नहीं , इससे जितनी जल्दी समझ लिया जायेगा उतना अच्छा है।  

Comments

  1. नहीं ज्योति दी, थोड़ी समझ को और बढ़ाओ।
    यह मर्द संवेदन हीन नहीं है,
    हिंसा,रक्तपात,दुह्साहस करना यह सब उसी मर्दानगी को साबित करने के लिए केवल नहीं किया जाता है।
    ये ब्यवस्थायें कभी थी, आज के लोकतंत्र में शायद इसकी अब जरुरत नहीं है। आज की महिलाएं, बच्चे, कमजोरों को आज इस सुरक्षा की जरुरत है ही नहीं।
    कानून है न इसके लिये।
    इसलिये आज के पुरुष को भी सौंदर्य-प्रासाधन के उपयोग तथा लड़की पटाने में ही अपना जीवन होम कर देना चाहिये।
    है कि नहीं?

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  2. मां ने बचपन मै नारी का सम्मान करना सिखाया होता, तो आज यह पुरुष सम्मान करना सीख लेता.

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    1. maa ne bachpan se purush ka samman kiya hota to bacche kuch seekte vinod ji , poora samaj purush se nafrat karta hai . sirf mahila ko hi samman dene ki baat karta hai . soch ka dayra badhaiye .

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  3. You have hit the very root of problem I.E. Misandry which is injected in veins of a child since childhood.

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  4. Well said....i want u share ur views on this topic http://www.youtube.com/watch?feature=player_detailpage&v=c0KYU2j0TM4

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