अगर संजय को माफ़ी मिलती है तो ..................

बहुत से तर्क दिए गए हैं उनको बचाने के लिए . पहला तर्क यह की वो समझदार नहीं थे . यदि तेंतीस की आयु में कोई समझदार न हो तो क्या  किया जाये . इतना नासमझ की उसे यह न समझ आये की जिससे वो मिलने जा रहा है वो आतंकवादी हैं . इतना नासमझ की AK 56 को खिलौना समझ ले और घर में रख ले. येही नहीं उसके पास हैण्ड ग्रेनेड़ निकलें , इतना नासमझ वो भी 33 की आयु में .
                                                   दूसरा तर्क यह की उनको अपनी सुरक्षा का डर था . वो कोई आम आदमी तो है नहीं उनके एक इशारे पर न जाने कितनी सुरक्षा उपलब्ध हो जाती .  यह तर्क भी कुछ हजम नहीं हुआ .  फिर भी हर तरफ उनको माफ़ी देने का  शोर है .  सबको  सहानुभूति है उनसे , वो बिचारा बन चुके है।
                                                   तो फिर हमने क्या किया है 
 दहेज़ लेने का इलज़ाम ही तो है , घरेलू हिंसा का भी  सिर्फ  आरोप भर है . जिसने आरोप लगाया वो बिलकुल  ठीक ठाक है . इस इलज़ाम  लगने से कहीं कोई बम धमाका नहीं हुआ न ही लोग  मारे गए तो क्यों  न   हम सबको  सामूहिक रूप  से माफ़ कर दिया जाये . हम पर भी  जब आरोंप लगा तो हम सब भी  नासमझ थे  . नही समझ  सके कि इस देश में शदी AK 56  रखने से बडा  अपराध है . इसलिए  सब को नादान समझ कर माफ़ कर दिया जाये .

Comments

  1. बिलकुल सही कहा अपने।

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  2. This is the mindset of our judges. the same judge passes unconstitutional order to add section 302-IPC with every 304-B so that courts can pass the death sentences in dowry death charges (Which are proved that more than 90% are false).
    At the other hand, seeking pardon to a guilt who should be awarded death sentence as others are...................

    Arth Mev Jayte

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