काला कानून ४९८अ

                               
Respected madam,                             

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विषय: मु्झे न्याय चाहिए तथा माँ द्वारा दर्ज पर सख्त कार्रवाई तथा भाई की हत्या का निष्पक्ष जांच.
> 1).
भाभीद्वारा झूठे498A केस  के तहत पुरा परिवार मॊत के मुँह मे।
> 2)
छोटे भाई बलवन्त कुमार की arresting  को।
> 3).
बडे भाई यशवन्त कुमार की संदेहास्पद मोत (हत्या)
> 4).
माँ द्वारा   दर्ज FIR पर कोई कार्रवाई नहीँ
> 5)
बिस्तर पर पड़ी बीमार माँ को घसीटकर को जेल ले जाया गया।
> 6). 
परीक्षा   भवन से परीक्षा लिखने के दॊरान  पुलिस द्वारा मेरी गिरफ्तारी
> 7).
एकमात्र    जीवित भाई का मानसिक संतुलन खोना
> 8).
मीरा राय तथा उसके मायकेवालो द्वारा हमेँ बर्बाद तथा जान से मारने की धमकियाँ अनेको बार देना
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महाशय,
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मेँ भारती राय पुत्री स्व. संभू नाथ राय माँ विधवा अपने बेटे की मोत के गम मेँ डूबी लाचार बीमार जो बुढापे मेँ जेल की एक महीने की सजा काट कर आई हे मेँ पूछती हूँ उनकी क्या गलती हे बेटे को जन्म देना गलती हॆ या खुशी अरमान के साथ बेटे की शादी करना गलती था जो ये दिन बहु ने दिखाया।?
  B)
दहेज उत्पीड़न मे, हमारे पूरे परिवार को अरेस्ट किया जा रहा था तब किसी ने जांचा परखा तक नहीँ, किसी ने जानने की कोशिश नहीँ की कि बात मेँ कितनी सच्चाई हे ओर आज जब सारे सबूत साक्ष्य, उस ओरत के खिलाफ हे कि हमारे बडे भइया को काफी मानसिक प्रताड़ित कर उसे मारा गया हे बाकी हम सब मरने की कगार मेँ खडे हे तब भी उस ओरत ओर उसके मायके वालोँ को आज तक क्योँ नहीँ पकड़ा गया ?आखिर इतनी मेहरबानी क्यो
C)
वो ओरत समाज मेँ,समझोते मेँ ,रिश्ते-नाते मोहल्ले के बीच मेँ,अपने पति मेरे भाई को नामर्द,नपुंसक हमेशा कहती रहती थी कि वह मुझे सुख नहीँ देता हे ,तो पूछती हूँ कि जो उसकी बेटी हे,वह किसकी हे ?क्या वह बदचलन हॆ ?जिद्दी, क्रूर  या मानसिक रुप से बीमार हे? वह ओरत जब चाहे ऑफिस,घर बाहर समाज के सामने भाई को बेइज्जत करदे ।पॆसे छिन ले ,मोबाइल छिन ले।ATM cardभी ले ले।नोकरी तथा संपत्ति लेने की बात करे ।अपनी पत्नी होने का दावा करे वह लालची ओरत को पत्नी का फर्ज निभाने की बात आई, तब कहाँ गई ?पति को  मारी या मरने के लिए मजबूर किया ओर  हमारे बुलाने पर तथा उसके घर मेँ जाने के बाद भी,पति का आखिरी चेहरा तक देखने नहीँ आई। 
                                                                                   एक
पीडिता

यह ईमेल मिली और यकायक मेरा गुज़रा हुआ कल मेरे सामने आकर खड़ा हो गया।मुझे आज भी भाई के वो दो चेहरे याद हैं।एक इस भूरे सोफे पर( जिसपर अभी मैं बैठी हूँ )बैठा हुआ परेशान बदहवास चेहरा और दूसरा मौत की नींद सोया हुआ शांत चेहरा।बदहवास अवसाद में डूबा चेहरा जो सब कुछ सुनकर भी नहीं सुन रहा था खुद परेशान था और हमे सांत्वना दे रहा था," किसी को कुछ नहीं होगा मैं संभाल लूँगा" और फिर मौत की नींद सोया हुआ चेहरा।मेरी जैसी और भी हैं जिनके भाइयों की मौत तो आत्महत्या थी ना दुर्घटना और ना ही हत्या क्योंकि उनको मरते  हुए किसी ने देखा ही नहीं।उनको एक धीमी मृत्यु दी गयी ४९८अ के डर की गोली ज्सिके प्रभाव में आकर आदमी धीरे धीरे मरने लगता है और हम उस मौत को स्वाभाविक या प्राकृतिक मान लेते हैं, तेज़ गाड़ी चला रहा होगा, बहुत बीमार था बेचारा,अचानक हार्ट अटैक से मर गया इत्यादि।
     ४९८अ का डर ऐसा है जिसमें आदमी अपने लिए नहीं डरता वो डरता है अपने परिवार के लिए।  मेरे घर पुलिस पहुँच चुकी थी ,यह भाई को पता था उसको यह भी अंदाज़ा हो गया था कि कोई भी कभी भी गिरफ्तार हो सकता है।  कानून गैर ज़मानती , संज्ञेय  है और पुलिस को अधिकार है गिरफ़्तारी का इतना बहुत है किसी भी साधारण आदमी को डराने  के लिए। पुरुष अपना दर्द सह सकता है पर परिवार का दर्द नहीं , यही उसको सिखाया गया है हमेशा से।  सबकी ज़िम्मेदारी लेने वाला पुरुष इस बात से घबरा जाता है कि उसका परिवार भी इसके लपेटे में गया है।  और फिर होता वो जिसके बारे में किसी ने कभी कल्पना भी नहीं की होती।  एक जवान मौत जिसको दुर्घटना मानकर भुला दिया जाता है , लोग भूल भी जाते हैं कि उस एक मौत से कितने लोग अंदर से मर चुके हैं। 
    ऐसे में उच्चतम न्यायालय का यह फैसला की बेवजह गिरफ्तारियाँ बंद की जाएँ कड़ी धूप में ठंडी हवा के झोंके की तरह हैं।  कानून वही है मगर परिवार सुरक्षित है यह पुरुष के लिए राहत की बात है।  ऐसे में महिलावादियों का हाय तौबा मचाना अमानुषिक व्यवहार है।  गौरतलब है की महिलावादी स्वयं को महिलाओं का परम हितैषी बताते हैं , फिर उनको माँ  और बहन जैसी महिलाएं क्यों नहीं दिखती ? उच्चतम न्यायालय के फैसले का विरोध करने वाले स्वयंभू महिला रक्षक चाहते हैं कि -
. इस  काले कानून के तहत बूढी ,लाचार महिलाएँ (सास ) गिरफ़्तार होती रहे ,
. गर्भवती , विदेशों में रहने वाली , विवाहित बहनें बेवजह कठघरे में  खड़ी हों ,
. पुरुषों की मृत्योपरांत मुक़दमे ज्यों के त्यों चलते रहे ,
. देश भर की महिलाएं इस भ्रम में रहे कि  महिलावादी उसके पक्ष की बात कर रहे हैं ,
. महिला अपने पिता के घर में आरोपी बने और ससुराल में यही महिला शोषिता बन जाये ,
. महिलावाद का कारोबार और दुकान इसी भ्रम में चलती रहे ,
. विवाह में तोहफों का लेना देना जारी रहे ,
१०. और वे जब चाहे इसको दहेज़ बना दे और जब चाहे स्त्री धन
                                बदला क्या है
दो पहलू हैं एक पहलू से बहुत कुछ बदला है दूसरे पहलू से कुछ भी नहीं बदला है।  गिरफ्तारी बिना किसी ठोस कारण के नहीं होगी ऐसा उच्चतम न्यायालय का आदेश है।  इससे पुरुष जो अपनी और अपने परिवार की गिरफ्तारी के डर  में जीते है , वह डर अब नहीं रहेगा।  दूसरे पहलू यह है, कि बिना कारण गिरफ्तारी नहीं होगी सुनने में अच्छा लगता है मगर कारण बनाने में समय कितना लगता है ? दूर दराज़ के इलाके और जहाँ अंतरिम जमानत के लिए भी उच्च न्यायालय की शरण लेनी पड़ती है वहां यह डर आज भी रहेगा। जागरूक पुरुष इसका लाभ ले सकेंगे मगर जमानत के लिए उतने ही पापड़ अभी भी बेलने पड़ेंगे।  महिला थाने में मध्यस्तता के नाम पर दुकान अब भी सजेगी।  पुरुष के जीवन की गाढ़ी कमाई अब भी बेवजह लुटेगी और उसके युवा जीवन के सुनहरे दिन अब भी कोर्ट के चक्कर काटने में बीतेंगे।
           गुज़ारा भत्ता के कानून वैसे ही हैं , कस्टडी के कानूनों में भी कोई बदलाव नहीं किए गया है।  पत्नी ने भले ही कभी पत्नी धर्म नहीं निभाया पर वो पति के पैसे की हक़दार है, पति ज़िंदा हो या मर जाये।  ऐसी स्थिति में ४९८अ में गिरफ्तारी का प्रावधान हलका करना , बच्चे को लॉलीपॉप पकड़ा कर चुप करवाने जैसा है। 
                                                      क्या होना चाहिए


. ४९८अ को जमानती बनाया जाये ,
, घरेलू हिंसा और ४९८अ अलग , अलग   करके एक कर दिए जाएँ ,
. घरेलू हिंसा कानून को स्त्री पुरुष दोनों के लिए  समान  बनाया जाये,
. पुरुष द्वारा गुज़ारा भत्ता देने की बजाय सरकार स्त्रियोँ के लिए रोज़गार का प्रबंध करे ,
. शेयर्ड पेरेंटिंग लागू हो जिस से पिता का बच्चे पर पूरा अधिकार रहे,
. स्त्रियोँ को अधिकारों के साथ साथ कर्तव्यों का भी पाठ पढ़ाया जाये ,
. पाठ्यक्रम में पुरुष अध्ययन को स्थान दिया जाए।

जब तक इस देश में काला कानून ४९८अ मौजूद है पुरुष के लिए किसी भी प्रकार से राहत नहीँ है।  फिर भी उच्चतम न्यायालय का नया निर्णय कुछ राहत देता है और यही राहत महिलावादियों को तकलीफ दे रही है।  वे चाहते हैं की इस देश के पुरुष और महिलाएं झूठे मामलों में फंसते रहे और उनका कारोबार यथावत् चलता रहे।  

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