इतना सन्नाटा क्यों है ?

http://timesofindia.indiatimes.com/city/jaipur/Women-named-in-dowry-harassment-jump-before-train/articleshow/20950626.cms
http://epaper.jagran.com/ePaperArticle/08-jul-2013-edition-LUCKNOW-page_11-82471-4809-11.html

मैं इंतज़ार करती रही की इन दो खबरों पर किसी महिला संघठन  की कोई प्रतिक्रिया आएगी। कोई महिला संघठन इनके लिए भी न्याय मांगेगा , किसी को तो इनके लिए मोमबत्ती जलाने की याद आयेगी । लेकिन  हुआ नहीं क्योंकि महिला संगठनों की नज़र में यह महिला हैं ही नहीं। उनके लिए महिला वो हैं, जिन्होंने इनकी मृत्यु में योगदान दिया , इनको मर जाने पे मजबूर किया।
                दोनों समाचारों में एक चीज़ है जो समान है वो है , महिलाओं की मृत्यु वो भी आत्महत्या। ऐसी आत्महत्या पर आमतौर पर महिला संघठन बहुत हाय तौबा मचाते हैं। जहाँ बात आत्महत्या के लिए उकसाने की हो तब तो मामला इतना उछाला जाता है कि पूरा देश एकमत हो जाता है। यहाँ क्या हो गया, महिला भी है आत्महत्या भी है फिर इतना सन्नाटा क्यों है ? किन महिलाओं की  रक्षा के लिए बने हैं यह महिला संघठन वो जो अपराधी है , वो जिनके एक झूठ पर पूरा परिवार गिरफ्तार हो जाता है। एक महिला की शिकायत पर दो महिलाएं अपना जीवन, अपना वजूद खो देती हैं। जिनको बिना किसी सबूत के जेल की सलाखों के पीछे फेंक दिया जाता है। इसके बाद उनके सामने दो रास्ते होते हैं या तो वो जीवन भर इस कलंक के साथ जीयें या फिर इन महिलाओं की तरह आत्महत्या कर लें।
                                                              महिलाएं यदि  आँखें अब भी न खोलें तो क्या कहा जाये।  सशक्तिकरण की आड़ में किस तरह उनको भ्रमित किया जा रहा है वो साफ़ साफ़ देख सकती हैं।पहली घटना में जहाँ माँ बेटी ट्रेन के आगे कूदी गौरतलब है कि उनका नाम दहेज़ उत्त्पीडन  की FIR में दर्ज था। इस परिवार का बेटा  जेल में था , जब उसकी माँ और बहन ने आत्महत्या की। उसकी मानसिक स्थिति क्या होगी इसकी कल्पना करना भी मुश्किल है।  दूसरी घटना में किस  तरह एक उम्रदराज़ महिला ने  बंदीगृह में  आत्महत्या की वह अत्यंत मार्मिक है लेकिन तथाकथित महिला अधिकार कार्यकर्ता किसी फ़िल्मी महिला की आत्महत्या पर आंसूं बहायेंगे। मीडिया भी उसी की चर्चा करती नज़र आएगी। लम्बी लम्बी  बहसें होंगी कि किस तरह आत्महत्या के लिए उकसाने के कानून का दुरूपयोग हो रहा है।
                                                  किन्तु दहेज़ के कानून के दुरूपयोग को देख कर भी सबकी आँखें , कान सब बंद हैं। बल्कि मैंने राष्ट्रीय चैनल पर एक मशहूर तथाकथित महिला कार्यकर्ता को यह भी कहते सुना की कहाँ है दुरूपयोग। एक बहुप्रथिष्ठित तथा कथित महिला उत्थान पर काम करने वाली संघठन की रिपोर्ट पढ़ी जो कहता है कि दहेज़ कानून का दुरूपयोग एक मिथक है। इस मिथक का चलते अब महिलाएं जान दे आरही हैं , पुरुष को तो छोड़ दिया जाये जिनकी आत्महत्या को वे किसान की आत्महत्या बताकर कर्तव्य की इतिश्री समझती हैं।
                 विचित्र स्थिति है सच्चाई दिखाने पर मुझे महिला विरोधी समझ लिया जाता है, तो वे महिला प्रेमी कहाँ है जो महिलाओं की रक्षा का दम भरते हैं। क्यों महिलाओं को वर्गों में विभाजित कर दिया गया है ? क्यों आँख मूंदकर उन अनाचारी महिलाओं को अबला माना जा रहा है ? क्या फायदा है ऐसे सशक्तिकरण का जो किसी विश्व सुंदरी को पीड़िता  बना देता है? सवाल कई है, लेकिन इन सवालों पे सन्नाटा  है, भयानक सन्नाटा जो किसी बड़ी त्रासदी की सूचना देता है। 

Comments

  1. The real problem is how many of us are aware of it ? Only those who are getting affected ? Today I came to know about the misuse of 498a when this draconian law shown its adverse effect on me and my family, otherwise every news related to dowry in Print/E Media used to be just any other news and we used to think "the poor girl" is being tortured.
    This is the mindset, we need to change it and it will not be going to change in days or in months ... it will take years.
    Anna started his movement for Lokpal years back but when it came in its full form, every second person knows this person ANNA.
    So we have to spread the awareness .. campaigns .. nukkad natak .. colleges .. everywhere where we can educated the people about the misuse of gender biased laws and how it is breaking the Indian Families , then only we can expect some changes in the mindset of the people.
    Otherwise it is very difficult to fight against the MINDSET of the people.

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  2. The only crime that was done by the victims of suicide in the 2 cases was that they were related to a male who was accused by another female.

    The perfect balance of Feminism and misandry.

    And the silence of the society proves that the society is not interested in truth or justice.

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  3. मैं तो ये सदियों से सुनता चला आ रहा हूँ , महिलाएं ही महिलायों की दुश्मन होती हैं /

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