जाने कितने सचिन

मैं जानती हूँ और मौतों की तरह  लोग यह मौत भी  भूल जायेंगे। भूल जायेंगे कि तुम कितने मजबूर थे की तुमको आत्महत्या करनी पड़ी. काफी बहाने ढूंढें जायेंगे तुम्हारी मौत के भी , तुम अवसाद में थे , तुम कायर थे लड़ नहीं सके।  मगर हम सब जानते हैं कितना मुश्किल है, तब लड़ना जब पूरा सिस्टम आपने खिलाफ हो।   कोई आपकी बात न सुने , कोई आपको न समझे , कुछ कुतर्क देकर आपको नकार दिया जाये। सब इस सिस्टम का सामना कर सके यह ज़रूरी तो नहीं। कुछ अतिसंवेदनशील भी होते हैं उनके लिए छोटी सी बात भी  बड़ा सबब बन जाती है, फिर उसपर कुछ भी तर्क आप दे लें बेकार है.
                                                                  जब हम  मिथ्या आरोपों का सामना करते हैं तो हमारे सामने कई "क्यों " खड़े जाते हैं जिनका जवाब हमारे पास नहीं होता। और इस क्यों से एक लम्बा युद्ध शुरू होता है. हम सचिन की मजबूरी का अंदाज़ा इस बात से लगा सकते हैं कि वो सुसाइड नोट में लिखता है " मैं नीरू (पत्नी ) से बहुत प्यार करता हूँ, उसे कुछ न किया जाये। "   यह सिस्टम से हारे हुए आदमी की आखिरी आवाज़ है , उसे लगता है और युद्ध का कुछ फायदा नहीं।  सिस्टम उसकी पत्नी को बेचारी औरत मान कर छोड़ ही देगा। फिर लड़ाई का क्या फायदा। इस सुसाइड नोट को किसी स्त्री के सुसाइड नोट से तुलना कीजिये। केवल आरोपों के सिवा कुछ नहीं मिलेगा और फिर सिस्टम एक ऐसे व्यक्ति को सजा भी देगा जिसका उस सुसाइड नोट में ज़िक्र तक नहीं है।   
                               सचिन अपने सुसाइड नोट में साफ़ साफ़ लिखता है कि उसपे लगाये गए दहेज़ एवं घरेलू हिंसा के आरोप झूठे हैं, लेकिन इसके लिए कोई ज़िम्मेदार नहीं है। वो जानता था ज़िम्मेदार सिस्टम है जो किसी भी परिस्थिति में पुरुष को ही दोषी समझता है. सचिन को लगा होगा कि उसके यह लिख  भर देने से उस पर लगे आरोप समाप्त हो जायेंगे। लेकिन ऐसा है नहीं , सिस्टम किसी पुरुष को चैन से मरने भी नहीं देता मर जाने से भी आरोप ज्यों के त्यों रहते हैं. पुरुष से संबंधित जितने भी रिश्ते हैं वो उन आरोपों का जवाब उसके मरने के बाद भी देते रहेंगे। 
                                     वहीँ दूसरी ओर क्या होता है , जब ज़रा सी सिस्टम की मार स्त्री पर पड़ जाती है।  लोकेश , एक और शहीद , जिसने पत्नी की रोज़- रोज़ की धमकियों से तंग आकार आत्महत्या कर ली थी। SIF दिल्ली की  टीम ने उसकी पत्नी और सास ससुर को आत्महत्या के लिए उकसाने के जुर्म में गिरफ्तार करवाया।  उसकी पत्नी को तो (सिस्टम के  पक्षपात की वजह से ) ज़मानत मिल गयी थी।  किन्तु सास को अभी तक नहीं मिल पाई है। उसकी पत्नी ने आत्महत्या कर ली और सुसाइड नोट में लिखा कि," मैंने अपने सास ससुर के साथ बुरा बर्ताव किया और  मेरी माँ को  छोड़ दिया जाये।"
                          यह कोई जीत नहीं है हार है क्योंकि एक छोटा बच्चा इस लड़ाई में अनाथ हो गया।  सिस्टम आने वाली नस्ल के बारे नहीं सोच रहा बस लड़ना सिखा रहा है।  ऐसी लड़ाई जिसका न आदि है न, अंत। सचिन की नन्ही सी बच्ची क्या सोच को लेकर बड़ी होगी या लोकेश का नन्हा सा बच्चा क्या बनेगा।  इस बात का किसी को कोई मतलब नहीं है।  पुरुष  को बहादुर बनकर इस अन्याय का सामना करना है।  भले ही कई लोकेश , कई सचिन इस लड़ाई में शहीद हो जाएँ।
                                      65000  में एक और सही क्या फर्क  पड़ता है !
                                
                               
                                                 
                                                      

Comments

  1. Very nicely depicted, and a dose of truth on the misandrous system.

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  2. Ek dum kadwa sach

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    1. haan bahut kadwa jo jane kitne bacchon ko anath bana raha hai !

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  3. सही कहा ज्योति "क्या फर्क पड़ता है" ? सचिन तो कई कुर्बान होते हैं इस अंधे लिंग-पक्षपाति कानून के आगे पर न जाने किस दिन ये कुर्बानियां काम आएँगी! उन माओं की बद दुआएं कभी तो मौत के जिम्मेदार लोगों को सज़ा दिलायें ! याद है मुझे शमशान में रोति बिलखती सचिन की दो बहने जिनके आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे,वो माँ जो चीख-चीख कर अपने बेटे को बुला रही थी,वो वृद्ध बाप जो अपने इकलोते जवान बेटे को कन्धा दे रहा था .......कैसे बयान करूं वो दर्द !कभी-कभी तो बचपन की वेह "ऊँगली माल "वाली कहानी याद आती है और लगता है आज सचिन, कल शायाद कोई और , परसों शायाद मैं .....................

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    1. mujhse zyada iss dard ko koi kya samjhega isiliye shabd dene ki koshish ki hai uss peeda ko jo kabhi to system ke kannon tak pahunchegi .

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  4. Very well said. Each word each phrase points towards the system which has to has to change at amy cost. Or else we wd witness many more of sachin's and lokesh. Sad sad trend for india.

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    1. thank you Rohit lets try this should noy happen to anyone !

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  5. Truly said, it is the system that is turning into orphans kids who lose their everything even before they begin to understand the world and the worldly matters.
    Once again Kudos!!

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  6. Excellent expression to pain which can be understood by only one who cares to fight for this pain.

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  7. how can i explain my words to you Smt. Jyoti But in a one word i can express it very well that is an Excellent blog to show the pain of a Husband in front of the system. You are right that the system is responsible for all the matrimonial problems.
    मेरी बर्बादी पर तू कोई मलाल ना करना;
    भूल जाना मेरा ख्याल ना करना;
    हम तेरी ख़ुशी के लिए कफ़न ओढ़ लेंगे;
    पर तुम मेरी लाश ले कोई सवाल मत करना!

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  8. After reading this post, I searched the net for those names. Lokesh Singh and his wife Sheetal's news is there. Although, no news about Sheetal blaming herself for her in-law's troubles, and committing suicide. But I cannot find anything on google related to terms: Sachin, Neeru, their daughter, and his 2 sisters. Is this a media blackout? Or media ignorance? Do you have any references about Sachin & Neeru on net? Please share it with us here.

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    1. The irony is there no news of these people that is why thought of writing blog . Otherwise they will be forgotten like all the 64,433 men committing suicide every year . Media is too busy in demonizing men .

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