है कुछ लड़कपन सा आज भी

जो छलक जाता है कभी कभी

है कुछ बचपन सा आज भी

जो बीता है बस अभी अभी

है कुछ सुगठित सा आज भी

जो न जाने क्यों बिखरता जाता है है कुछ वोह रातें आज भी जो जाने क्यों बेचैन गुजरती है

है कुछ एहसासों की कसक आज भी

जो धुंधली पड़ती जाती है

है कुछ रिश्तों का दर्द आज भी

जो जाने क्यों तड़पाता है

जब है सब कुछ वह आज भी

तो मिल ही जाता फिर कभी कहीं.

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