और कितने शहीद ?
बुधवार की आम सुबह थी, जब बैंगलोर एक कटु घटना के साथ जागा . ३६ वर्षीय नौजवान ने अपनी पत्नी के अत्याचार से तंग आकर आत्महत्या कर ली . अपने पीछे वह अपने एक वर्षीय पुत्र , अपनी वृद्ध माँ , दो विवाहित भाइयों को छोड़ गया . साथ ही एक सुसाइड नोट जिसमें उसने अपनी पत्नी और सास को इस कठोर कदम का दोषी बताया है . पेशे से तकनीशियन मनोज कुमार ओरेकल के लिए काम करता था और उसकी पत्नी प्रमिला भारत इलेक्ट्रिक में काम करती थी .
मनोज की शादी कलह पूर्ण थी , पत्नी के लगातार अत्याचारों ने उसे परिवार से अलग रहने को मजबूर कर दिया था . उसकी दहेज़ का केस करने की धमकी के चलते मनोज ने यह कदम उठाया साथ ही 8 अप्रैल की दुर्भाग्यपूर्ण रात को मरने से पहेले अपनी टी शर्ट पर" सॉरी बेटा" लिखा . यह सब उसकी पत्नी की प्रताड़ना के बाद हुआ जिसमें प्रमिला ने मनोज के भाई को हेलमेट से मारा , माँ को मारने की कोशिश की , पूरे परिवार को दहेज़ के झूठे मुक़दमे में फंसाकर जेल भेजने की धमकी दी .
मनोज अकेला पीड़ित नहीं है ऐसे लाखों पुरुषों हैं जो विवाह में रोज़ प्रताड़ित होते हैं . इस आत्महत्या से वो उन हजारों पुरुषों की श्रेणी में आ गया हैं, जो इसी तरह साल दर साल मौन मृत्यु का शिकार होते हैं और असंवेदनशील समाज उनकी रक्षा करना ज़रूरी नहीं समझता .
सुदूर देहरादून में
डाक्टर प्रशांत का केस भी मनोज से अलग नहीं है , उन्होंने आज से करीब दो महीने पहले आत्महत्या कर ली थी . प्रशांत को झूठे दहेज़ के मुक़दमो में फंसाया गया और उनको कहीं इन्साफ नहीं मिल रहा था . इस पक्षपात के आगे घुटने टेकने के पचपन दिन बाद भी उनके दोषी मुक्त घूम रहे हैं और देहरादून की पुलिस प्रशांत के घरवालों को सिर्फ मौखिक आश्वासन दे रही है .
समाज , देश , कानून पक्षपाती है यह बताने के लिए और कितने शहीद चाहिए ???
मनोज की शादी कलह पूर्ण थी , पत्नी के लगातार अत्याचारों ने उसे परिवार से अलग रहने को मजबूर कर दिया था . उसकी दहेज़ का केस करने की धमकी के चलते मनोज ने यह कदम उठाया साथ ही 8 अप्रैल की दुर्भाग्यपूर्ण रात को मरने से पहेले अपनी टी शर्ट पर" सॉरी बेटा" लिखा . यह सब उसकी पत्नी की प्रताड़ना के बाद हुआ जिसमें प्रमिला ने मनोज के भाई को हेलमेट से मारा , माँ को मारने की कोशिश की , पूरे परिवार को दहेज़ के झूठे मुक़दमे में फंसाकर जेल भेजने की धमकी दी .
मनोज अकेला पीड़ित नहीं है ऐसे लाखों पुरुषों हैं जो विवाह में रोज़ प्रताड़ित होते हैं . इस आत्महत्या से वो उन हजारों पुरुषों की श्रेणी में आ गया हैं, जो इसी तरह साल दर साल मौन मृत्यु का शिकार होते हैं और असंवेदनशील समाज उनकी रक्षा करना ज़रूरी नहीं समझता .
सुदूर देहरादून में
डाक्टर प्रशांत का केस भी मनोज से अलग नहीं है , उन्होंने आज से करीब दो महीने पहले आत्महत्या कर ली थी . प्रशांत को झूठे दहेज़ के मुक़दमो में फंसाया गया और उनको कहीं इन्साफ नहीं मिल रहा था . इस पक्षपात के आगे घुटने टेकने के पचपन दिन बाद भी उनके दोषी मुक्त घूम रहे हैं और देहरादून की पुलिस प्रशांत के घरवालों को सिर्फ मौखिक आश्वासन दे रही है .
समाज , देश , कानून पक्षपाती है यह बताने के लिए और कितने शहीद चाहिए ???
Koi Saath Na De Humara.. Chalna Hume Aata Hai..
ReplyDeleteHar Aag se Hein Vaakif .. Jalna Hume Aata Hai..